Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 16

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नत: |
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन || 16||

न-कभी नहीं; अति-अधिक; अश्नतः-खाने वाले का; तु-लेकिन; योग:-योग; अस्ति–है; न-न तो; च-भी; एकान्तम्-नितान्त; अनश्नतः-भोजन न करने वाले का; न न तो; च-भी; अति-अत्यधिक; स्वप्न-शीलस्य–सोने वाले का; जागृतः-जो पर्याप्त नींद नहीं लेता; न-नहीं; एव-ही; च-और; अर्जुन-अर्जुन।

Translation

BG 6.16: हे अर्जुन! जो लोग बहुत अधिक भोजन ग्रहण करते हैं या अल्प भोजन ग्रहण करते हैं, बहुत अधिक या कम नींद लेते हैं, वे योग में सफल नहीं हो सकते।

Commentary

साधना के ध्येय का वर्णन करने के पश्चात् श्रीकृष्ण कुछ नियमों का पालन करने के लिए कहते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे मनुष्य जो शरीर की देखभाल के नियमों को भंग करते हैं, योग में सफलता नहीं प्राप्त कर सकते। प्रायः इस पथ का अनुसरण करने वाले साधक अपने अधूरे ज्ञान के कारण कहते हैं-"तुम आत्मा हो न कि शरीर" इसलिए वे केवल आध्यात्मिक साधना में लिप्त हो जाते हैं और शरीर की देखभाल करना छोड़ देते हैं किन्तु उनकी ऐसी धारणा उन्हें बहुत आगे तक नहीं ले जा सकती। यह सत्य है कि हम शरीर नहीं हैं फिर भी हम जब तक जीवित रहते हैं, शरीर हमारा वाहक होता है और हमें कृतज्ञतापूर्वक इसकी देखभाल करनी चाहिए। आयुर्वेदिक ग्रंथ चरक संहिता में वर्णन है-"शरीरमाधं खलु धर्म - साधनम्" अर्थात् "हमारा शरीर हमें धार्मिक गतिविधियों में तल्लीन रखने का साधन है।" यदि शरीर अस्वस्थ हो जाता है, तब अध्यात्मिक कार्यों में भी बाधा उत्पन्न होती है। रामचरितमानस में भी उल्लेख है, "तन बिनु भजन बेद नहिं बरना।" अर्थात् वेद शरीर की उपेक्षा करने की अनुशंसा नहीं करते। वास्तव में वे हमें शरीर की देखभाल करने का उपदेश देते हैं। ईशोपनिषद् में इस प्रकार से वर्णन किया गया है।

अन्धंतमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते।

ततो भय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः।। 

(ईशोपनिषद्-9)

 "जो केवल भौतिक विज्ञान को पोषित करते हैं, वे नरक में जाते हैं किन्तु जो केवल आध्यात्मिक ज्ञान को पोषित करते हैं, वे और अधिक गहन नरक में जाते हैं।" शरीर की देखभाल के लिए भौतिक विज्ञान आवश्यक है जबकि आध्यात्मिक ज्ञान हमारे भीतर की दिव्यता के आविर्भाव के लिए अनिवार्य है। जीवन के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हमारे जीवन में दोनों का संतुलन होना चाहिए इसलिए योगासन, प्राणायाम, और उपयुक्त आहार विहार आदि वैदिक ज्ञान का अनिवार्य अंग हैं। चारों वेदों में प्रत्येक वेद का एक उपवेद है। जैसे अथर्व वेद का सहायक वेद आयुर्वेद है जो औषधीय चिकित्सा और उत्तम स्वास्थ्य का प्राचीन विज्ञान है। यह दर्शाता है कि वेद शारीरिक स्वास्थ्य की देख-रेख करने पर बल देते हैं। तदनुसार श्रीकृष्ण कहते हैं कि अधिक भोजन करना या बिल्कुल अन्न ग्रहण न करना, अति सक्रियता और पूर्ण अकर्मण्यता आदि सब योग के लिए बाधक हैं। आध्यात्मिक साधकों को ताजा भोजन, पौष्टिक खाद्य पदार्थ, दैनिक व्यायाम और प्रत्येक रात्रि को भरपूर निद्रा लेकर अपने शरीर की भली-भाँति देखभाल करनी चाहिए।

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Swami Mukundananda

6. ध्यानयोग

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